खातेगांव: बहुरूपिया कला धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर
रविवार शाम 5:00 बजे बहुरूपिया बनाकर लोगों का मनोरंजन करने वाले राजू मस्ताना का कहना है कि: समय के साथ-साथ बदलाव हुआ और बहुरूपिया आम लोगों के बीच पहुंचा. गांव-गांव जाकर लोगों का मनोरंजन करना लगा. हालांकि आधुनिकता के इस दौर में बच्चे तो छोड़िए कई बड़ों को भी ये नहीं पता है कि बहुरूपिया होता क्या है? बहुरूपिया शब्द का अर्थ क्या है? ऐसे में ये कहना बिल्कुल गलत