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“मैं तो वही खिलौना लूंगा मचल गया दीना का लाल, खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल-उछाल! व्यथित हो उठी मां बेचारी- था सुवर्ण-निर्मित वह तो, ‘खेल इसी से लाल, नहीं है राजा के घर भी यह तो!” हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा मूर्धन्य कथाकार सिया - Fatehpur News