“मैं तो वही खिलौना लूंगा मचल गया दीना का लाल,
खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल-उछाल!
व्यथित हो उठी मां बेचारी- था सुवर्ण-निर्मित वह तो,
‘खेल इसी से लाल, नहीं है राजा के घर भी यह तो!”
हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा मूर्धन्य कथाकार सिया
Fatehpur, Fatehpur | Sep 5, 2021