कर्तव्य ही आरंभ है, कर्तव्य ही प्रारब्ध है।
करूणा और कर्मणता के स्नेहसूत्र में बंधा कर्म… यही तो है कर्तव्य।
सपनों का साथ है — कर्तव्य।
संकल्पों की आस है — कर्तव्य।
परिश्रम की पराकाष्ठा है — कर्तव्य।
हर जीवन में जो ज्योति जला दे, वो इच्छाश
63.7k views | Gujarat, India | Aug 7, 2025