धरती ठिठुर रही सर्दी से ,घना कुहासा छाया है कैसा ये नववर्ष है,जिससे सूरज भी शरमाया है
लिए बहारें आँचल में,जब चैत्र प्रतिपदा आएगी
आर्यावर्त के वासी हैं हम तब अब अपना नववर्ष मनाएंगे।
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धरती ठिठुर रही सर्दी से ,घना कुहासा छाया है कैसा ये नववर्ष है,जिससे सूरज भी शरमाया है
लिए बहारें आँचल में,जब चैत्र प्रतिपदा आएगी
आर्यावर्त के वासी हैं हम तब अब अपना नववर्ष मनाएंगे।
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