ईश्वर का महान प्रसाद है मानव जीवन,हमारे भीतरअनन्त की शक्ति है,अनन्त आनन्द का श्रोत है। आत्मा के अंदर अन्तरात्मा रूप से ईश्वर ही विराजमान है,आवश्यकता है आध्यामिक ज्ञान की,स्वर्वेद सद्ज्ञान की,विहंगम योग के ध्यान की,जिसके आलोक में एक साधक का जीवन सर्वोन्मुखी विकास होता है।उक्त उद्गार में स्वर्वेद कथामृत के प्रवर्तक सुपूज्य संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महारा