ग्रामीणों ने बुधवार शाम साढ़े 7 बजे बताया कि भदेसर के धीरजी का खेड़ा गांव का यह बंदर कोई साधारण जीव नहीं था, बल्कि ग्रामीणों की आस्था का प्रतीक बन चुका था। सात सितंबर को उसकी मौत के बाद गांव के 11 भक्तों ने मुंडन संस्कार कर पिंडदान किया और अस्थियों को मातृकुंडिया में विसर्जित किया। इसके बाद परंपरा अनुसार पगड़ी की रस्म निभाई गई। अंतिम संस्कार के बाद गांव में