पोला (बैल पोला) के अवसर पर किसान और लोक-कुंभकारों द्वारा बनाए गए मिट्टी से बने खिलौने, बर्तन, और नंदिया बैल-गाड़िया पर्व के दौरान बिके—परन्तु यह बिक्री पिछले वर्ष की तुलना में कम रही। कुंभकार समाज ने इसे आधुनिक जीवन शैली में आस्था और पारंपरिक त्योहारों से दूर होते समाज के संकेत के रूप में देखा, जिससे अब खेती-किसानी और त्यौहारों की रौनक में कमी हो रही है।