मित्र की परख संकट दुख के समय ही हो सकती है। जो दुख की घड़ी में मदद के लिए आगे आए वहीं सच्चा मित्र हैं। जैसे कृष्ण और सुदामा की मित्रता आज भी प्रासंगिक हैं। यह उद्गार श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर श्रीराम नगर अंता में श्री मद्भागवत कथा के सातवें दिन की कथा के समापन अवसर पर कथावाचक आचार्य इंद्र नारायण कमल नयन जी महाराज ने व्यक्त किए।